योगेंद्र की फोटो है, बात उनकी नही।

ये बात उनके पिता की है। सात साल के थे, जब दंगाइयों ने उनके पिता, याने योगेंद्र के दादा को मार डाला। वे स्कूल हेडमास्टर थे। दंगाइयों ने , जो मुस्लिम थे, स्कूल में आकर बच्चो को, अपने हवाले करने की मांग की।

मास्साब ने साफ नकार दिया। तो वहीं टुकड़े टुकड़े कर दिए गए। मारने वाले का नाम था- सलीम
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सात साल के बच्चे में उस घटना से क्या असर हुआ होगा, आप कल्पना करें। वक्त के साथ ऐसे लॉस आपको मेच्योर बना सकते हैं, या फिर नफरती..

बाप के हत्यारों को माफ करने वाले राहुल प्रियंका मुझे जरा कम समझ आये। मुझसे तो न हो पाता। लेकिन योगेंद्र के फादर,जो प्रोफेसर बने, उन्होंने में इससे भी एक कदम आगे बढ़कर काम किया।

जब बेटा हुआ, तो नाम रखा- सलीम

सुबह शाम दिन रात अपने बच्चे को अपने बाप के कातिल के नाम से पुकारना। ये तो अलग ही स्पेस और अलग ही यूनिवर्स के लेवल का कम्पाशन है।
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बहरहाल, मुस्लिम नाम की वजह से क्लास के दूसरे बच्चे, सलीम से अजीब सवाल करते। बच्चे ने नाम बदलने की जिद की।

खुद ही अपना नया नाम रखा- योगेंद्र

घटना योगेंद्र ने एक इंटरव्यू में बताई थी। क्लोज सर्कल आज भी उन्हें सलीम ही कहता है। ऐसा बच्चा जीवन में कहीं भी भटक जाए, साम्प्रदायिक नफरत की गोद मे न बैठेगा।
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आपने अपने बच्चे को कैसी शिक्षा दी है, सोचें।

क्योकि वह खुद के लिए वैसा ही समाज, परिवार और देश बनाएगा।