चीफ जस्टिस यूयू ललित के फैसलों पर दुखी होने से पहले एक बात समझ लो।
क्या आम ब्राह्मण का बेटा-बेटी सुप्रीम कोर्ट का जज बन सकते हैं ? जवाब है नही। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 75% जज 125 ब्राह्मण परिवार से आते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपने बेटे-दामाद को न्यायपालिका में बिना एग्जाम घुसा देते हैं। यही हाल अन्य सवर्णों का है की मात्र जाति से आपको मौका नहीं मिलेगा लिंक भी चाहिए।
ये पुश्तैनी परिवार सरकार का साथ देते हैं और बदले में सरकारें इनका साथ देती हैं। इनका बाप राज्यपाल, नाना चांसलर, दादी स्पीकर टाइप मिलेंगे। अब अगर आप कहो की इस सिस्टम को तोड़ो और आम आदमी के बच्चों को भी घुसाओ तो सवर्णों को लगेगा इसमें उनका घाटा है, विरोध की तलवार निकाल लेंगे, जबकि उनके दूर दूर तक के रिश्तेदारों में कोई सुप्रीम कोर्ट का मुंह देखने नही गया।
में कहता हूं की, न्यायपालिका में आरक्षण घुसा दो, EWS भी घुसा दो। इससे कम से कम अलग -विचारधारा और गरीब मिडिल क्लास के बच्चे भी वहां पहुंचे। देखा जाए तो देश में सबसे ज्यादा अपराध तो गरीब आदमी के साथ ही होता है फिर उसकी जाती कोई भी हो। ऊपर से गरीब छोटी जाती का और हो तो और ज्यादा शोषण। आदिवासी, और दलित मुस्लिमों से भारत की जेलें भरी पढ़ी हैं क्योंकि उन्हें कानून पता ही नही हैं। तो न्यायपालिका में गरीब के बच्चों को घुसना तो सबसे जरूरी है।
दुनियां के किसी भी देश की जनता का “बेवकूफ सरकार” से 10 साल में मोह भंग हो जाता है और वो जिसे खुदा मानते थे उसी को गद्दी से उतार देते हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं होगा। उसका कारण है “जातिवाद”। यहां पर जनता और शासक के बीच में जाति का पेंच फंसा रखा है जिसका फायदा संघ और सरकार जम के उठा रहे है।
याद रहे, किसी देश का विकास संसद 20 साल में, टेक्नोलॉजी 10 साल में, व्यापार 5 साल में कर सकता है। लेकिन न्यायपालिका सुद्रण हो तो यही काम इन सब को लाइन पे लाके मात्र 2-3 साल में कर सकती है। और खुली छूट देकर 20 साल पीछे भी मात्र 2-3 साल में ही धकेल सकती है। फैसला आपका है। #कालचक्र