तिरंगा, कांग्रेस का झंडा है

तिरंगा, कांग्रेस का झंडा है।

और बेसिक आइडिया गांधी का। 1920 तक गांधी कांग्रेस में स्थापित हो गए थे। वो इसे रिडिफाइन कर रहे थे।

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अब तक कांग्रेस, हिंदूवादी थी। तिलक, मालवीय, लाजपत राय ने यह रंग दिया था। यहां तक कि मुंजे और हेडगेवार कांग्रेसी हुआ करते थे।

अब गांधी कांग्रेस को सेक्युलर बनाना चाहते थे। खिलाफत आंदोलन में मुसलमानों का साथ देना एक मास्टरस्ट्रोक था। कांग्रेस बड़ा फोरम थी। जब उसकी तासीर बदलने लगी, तो मुस्लिम बड़ी संख्या में कांग्रेस से जुड़ने लगे।

गांधी को एक स्वराज झंडा चाहिए था। जिसमे लाल रंग हो, हिन्दू का प्रतीक। हरा हो मुसलमानो का प्रतीक औऱ बीच मे हो चरखा। पिगाली वेंकैया को यही विचार दिया गया था। झण्डा 1921 के अधिवेशन तक बनाकर देना था।

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पिंगाली लेट हो गए। गांधी ने इसे अच्छी किस्मत माना। इसलिए कि उन्हें झंडे में हिन्दू मुस्लिम के अलावे अन्य धर्मों का तो ख्याल ही नही आया था। तो गांधी ने सफेद जोड़ने को कहा।

झंडा 1923 में पहली बार सामने आया। केसरिया, सफेद औऱ हरा, सबको बराबर स्पेस। बीच की पट्टी में चरखा। हैंडमेड खादी में बुना हुआ। झंडा कांग्रेस ने एडॉप्ट किया।

इसे स्वराजी झंडे का नाम मिला।

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यह अंग्रेजी राज के खिलाफ हमारे अपने राज का सिम्बल बन गया। आगे आंदोलनों में इसका इस्तेमाल होने लगा। जहां नगरपालिकाओ में कांग्रेसी बहुमत में होते, इसे इस्तेमाल करते।

अंग्रेज बड़े गुस्सा हुए। ऐसी नगरपालिकाओं का फंड रोकने लगे। वैसे ही जैसे आजकल केंद्र की सरकार विपक्षी स्टेट का फंड रोक देती है। वैसे भी अब स्टेट गर्वमेंट, नगरपालिका से ज्यादा रह नही गयी। खैर…

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1929 में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव हुआ। याने अब तक अंग्रेजो से होमरूल या डोमिनियन स्टेटस ही मांगा जाता था। अब उन्हें पूरा ही भगा देने का निश्चय किया गया।

जवाहरलाल नेहरू ने स्वराज फ्लैग रावी के तट पर फहराया। वह 26 जनवरी 1930 था। सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया।

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20 साल बाद भारत गणराज्य अस्तित्व में आया। कांग्रेस का झंडा, देश का झंडा हुआ।

थोड़े से बदलाव के साथ। याने चरखे का सिम्बल, अशोक चक्र से बदल दिया गया। सम्विधान सभा की झंडा समिति ने रंगों के अर्थ बदल दिए। इन्हें बलिदान, शांति और समृद्धि का रंग बताया।

मध्य में अशोक चक्र को न्याय और धर्म का प्रतीक बताया। झंडा चल पड़ा। हमारा लोकतंत्र भी।

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1980 में एक नई पार्टी अस्तित्व में आई। उसका भी एक झंडा आया। चमकीले रेशम का बना हुआ। उसमे 80% जगह केसरिया को थी, 20% हरे को। ऊपर पार्टी का चुनावी सिम्बल था।

इसमे सफेद नही था, चक्र नही था, चरखा भी नही था। लेकिन मजा देखिए, वक्त वह पार्टी “गांधीवादी समाजवाद” का नारा बुलंद कर रही थी।

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2014 में वह पार्टी पहली बार पूरे बहुमत से आई। तब से एक औऱ झण्डा दिखने लगा है।

इसमे सिर्फ एक ही रंग है। अक्सर विध्वंस के आसपास दिखाई देता है। इसका मध्य भाग, याने हृदय काटकर निकाल दिया गया है।

कुछ लोग कहते है, कि यह हृदयहीन ही हमारा अगला झंडा होगा। बहुत से लोग इस ख्याल से आल्हादित भी हैं। इसलिए कि उन्हें कांग्रेस से नफरत है।

और तिरंगा, तो कांग्रेस का झंडा है।