सामाजिक संस्था पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की है कि उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर और उसमें मारे गए लोगों की सीबीआई और एसआईटी द्वारा जांच कराई जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को नोटिस जारी किया.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत सरकार को यूपी के 15 फर्जी एनकाउंटरों के बारे में लेटर लिखा है, एवं अन्य 59 के फ़र्ज़ी होने की आशंका व्यक्त की है। सरकार ने अभी तक जवाब नहीं दिया है।
मानवाधिकार समूह Citizens Against Hate (CAH) के अनुसार उत्तर प्रदेश में 16 फ़र्ज़ी एनकाउंटर हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार मृत को पास से छाती के ऊपर गोलियां मारने और टार्चर करने के प्रत्यक्ष निशान मिले हैं। कुछ केस में व्यक्ति को पुलिस द्वारा गैर क़ानूनी तरीके से अगवा किया गया जिसमे परिजन प्रत्यक्ष गवाह भी हैं।
पिछले साल 27 नवम्बर को मुजफ्फरनगर के पास 20 साल के इरशाद को पुलिस द्वारा फेक एनकाउंटर में मारने के मामले में राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग ने योगी सरकार और UP पुलिस के डाइरेक्टर जनरल को नोटिस जारी किया था। पुलिस का कहना था की इरशाद सांडो को मिनी ट्रक से ले जा रहा था और रोकने पर फायर कर दिया , जवाबी फायर में मारा गया। जबकि पास के गाँव वाले इस खबर को झूठा बता रहे हैं और परिजनों के अनुसार इरशाद को ड्राइव करना ही नहीं आता था।
मार्च 2018 में “उत्तर प्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC)” ने भी यूपी पुलिस के 4 एनकाउंटरों पर इन्क्वाइरी बिठाई क्योंकि चारों एनकाउंटरों की FIR एक दूसरे की कॉपी थी। इसकी शिकायत एक मृत के नियोक्ता ने की जिसे कानपुर से पुलिस ने उठाकर आजमगढ़ में एनकाउंटर दिखाया था। ये चार केस आजमगढ़ जिले के मुकेश राजभर, जय हिन्द यादव और रामजी पासी, और इटावा जिला के आदेश यादव उर्फ़ सूंदर के हैं। (इन केसों का डिटेलपोस्ट पिछले पोस्ट पर है)
नवम्बर 2018, शामली में पुलिस की गाड़ी से खींच कर मोब लॉन्चिंग का शिकार हुए युवक के लिए भी यूपी पुलिस को मानवाधिकार का नोटिस मिला था। गलत पहचान के लिए बागपत के सुमित गुर्जर को गाँव से उठाकर नॉएडा में एनकाउंटर के मामले में मानवाधिकार ने 4 हफ़्तों में योगी सरकार से रिपोर्ट मांगी थी। जो आज तक सबमिट नहीं हुयी है।
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने आते ही पहले अपने और भाजपा समर्थक 20 हज़ार अपराधियों के केस ख़त्म करवाए और उसके बाद शुरू हुआ एनकाउंटर का खेल। कई पुलिस वालों का 8 लाख में फ़र्ज़ी एनकाउंटर करवाने, दुश्मनी निकालने का रेट बताते हुए, प्रेशर में एनकाउंटर करने की बात कहते हुए ऑडियो/वीडियो भी वाइरल हुआ जिसपे सस्पेंशन भी हुए।
देश-विदेश में थू-थू भी हुयी एवं UN Rights Body, सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार आयोग से नोटिस भी मिले, कुछ केसों में योगी जी ने नौकरी-पैसा देकर लीपापोती भी की, लेकिन यूपी में फ़र्ज़ी एनकाउंटर्स बा-दस्तूर जारी रहे। केंद्र सरकार यदि इन नोटिसों के और जनता की जान की कीमत समझती तो बर्ख़ास्तगिया/तबादले करती लेकिन नहीं किये। केंद्र में बहुमत की सरकार का योगी की राज्य सरकार को पूरी शह है इसी लिए जनता में भय है।
एक बात और, इसी दौरान यूपी में अपराध बढ़ा है। इसका मतलब साफ़ है, एनकाउंटर अपराधियों का नहीं आम जनता का और सरकार विरोधियों का हो रहा है। यूपी विश्व की इकलौती जगह है जहाँ जनता पुलिस को देख के सुरक्षित महसूस करने की बजाय डरती है