आदिवासी एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार की याचिका रद्द : सुप्रीम कोर्ट से 5 लाख का जुरमाना

हिमांशु कुमार का केस अजब है..

सम्विधान का 32 अनुच्छेद हर किसी को यह अधिकार देता है कि वह, जहाँ स्टेट से असन्तुष्ट हो, सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
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अगर कोई केस, या मामला आधारहीन लगता है तो जज उसे मौके पर ही खारिज कर अपना समय बचा सकते हैं। पी एन ओक ने ताजमहल को लेकर ऊल जलूल याचिकाएं दर्ज की, तो कोर्ट ने खारिज कर दिया कहा- वी कैन नॉट रन बिहाइंड बी इन द बोनट..

लेकिन हिमांशु साहब की याचिका हत्याओं और बलात्कार की जांच के लिए थी। निष्पक्ष जांच, जिसके बाद स्टेट कार्यवाही करने लायक पाए, तो करे। मेडल देना है तो दे।

जांच की मांग अपराध कैसे?
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मामला न सिर्फ मान्य हुआ, 12 साल चला। याचिका लेने वाले भी सुप्रीम कोर्ट के जज थे। 12 साल केस की सुनवाई में बैठने वाले भी सुप्रीम कोर्ट के जज थे।

कानून की, इंटेंट की, इम्पेक्ट की थोड़ी बहुत समझ तो उन जजो को भी रही होगी। याने प्रथम दृष्टया याचिका में वजन था, वरना ” बी इन द बोनट” की तरह वही जज खारिज कर देते।

लेकिन एक पूरी शृंखला है, जिसमे पिछले सात आठ साल में गुजरात दंगों के आरोपी सुप्रीम कोर्ट से बरी हुई। आरोप लगाने वाले संजीव भट्ट से लेकर तीस्ता तक येन केन प्रकारेण जेल गए। अब Himanshu Kumar पर 5 लाख का जुर्माना लगाया गया है।
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तीस्ता औऱ हिमांशु के बाद देश को यह समझ आ गया अनुच्छेद 32 नए अब इर्रिलेवेंट हो चुका है। नए भारत के निर्माण में यह सबसे बड़ा रोड़ा है।

मैसेज इज वेल टेकन माई लार्ड, थैंक्स।
लेटस क्लोज हियर।

हिमांशु कुमार के पास 5 लाख नही हैं। उनके हाथ मे दिया जाए, तो भी वे लेंगे नही, जमा नही करेंगे। वे भारत के न्याय तंत्र को एक्सपोज करना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट को कटघरे में जाने से रोकना नही चाहते, जिसमें आने के लिए कोर्ट खुद जी-जान से बेताब है।

हिमांशु का जेल जाना भारत की स्टैंडिंग को वैश्विक पटल पर उससे ज्यादा कमजोर करेगा, जो जुबैर, तीस्ता, कप्पन, भट्ट और नूपुर सहित तमाम मामले में हो रहा है।
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तो माई लार्ड, भारत की इज्जत बचाने के लिए आम जनता को एक मिडिल ग्राउंड दें। हिमांशु कुमार के जुर्माने के भुगतान के लिए एक पेटीएम खोल दें।

इस देश मे पुराने भारत के इतने मुरीद तो हैं, कि 1-1 रुपये भी दान करें, तो पांच लाख से ज्यादा इकट्ठे हो जाएंगे।

तय शुदा चार हफ्ते के भीतर।

लेखक : मनीष सिंह