तिरंगा नही तो राशन नही

ऐसा करने को मोदी जी ने नही कहा। लेकिन तिरंगे न खरीदने पर राशन द देने, सैलरी रोक देने और दूसरे तरीकों से जोरदार उगाही चल रही है।

पचास साल पहले इंदिरा जी ने भी नही कहा कि लेागों को दौड़ाकर पकड़ो, नसबंदी करके मरफी का रेडियो दे दो।

लेकिन हुआ। सरकारों को कोई आदेश देने, कानून बनाने, सरकारी अभियान छेड़ने के पहले, अपने हर कथन, आदेश, बिल की रिवर्स स्क्रूटनी करने की व्यवस्था है। याने जो करना चाहते है, वह बोलने, लिखने और सर्कुलेट करने से असर क्या होगा। इस पर पब्लिक क्या झोल निकालेगी, वकील क्या लूप होल खोजेंगे और अफसर किस तरह से पैसा बनाने का मौका निकालेगे। यह करने के लिए सीनीयर अफसर, अनुभवी पुराने मंत्री काम आते है। संसद काम आती है, उसमे विपक्ष काम आता है। हमने इन सारी जगहों को यस मैन से भर लिया है। जहां यस मैन नही, वहां रोड रोलर और बुलडोजर है।हर कानून 20 मिनट मे बिना डिस्कशन पास हो रहा है।

नेता शक्तिमान हो, तो अफसर सर्वशक्तिामन और पार्टी वर्कर बेलगाम हो जाते है। याद रखिए, मजबूत नेता चीन पाकिस्तान अमेरिका को मजूबती नही दिखा सकता, वहां तो डिप्लामेसी ही चलेगी।

उसकी सारी शक्ति, डोमेस्टिकली, आपकी छाती पर मूंग दलने मे लगेगी। उपर से, सनक मे काम करने वाला बन्दा है, तो यह हाल होना लाजिम था

कि तिरंगा नही तो राशन नही …