कश्मीर के नॉन सपरेटिस्ट नेता : मिस्ड ऑपर्च्युनिटीज ?

कश्मीर के नॉन सेपरेटिस्ट लीडर्स, भारत के लिए नेशनल एसेट हैं। बरसो से अशान्त राज्य को, भारत से वापस जोड़ने की डोर..

जहां की जनता, अपने लोगो को हाशिये पर देखते हुए, खुद को रायसीना हिल का उपनिवेश मानने लगी है।
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यह पिछले 30 सालों में हुआ है। इसके पहले कश्मीर के नेताओ को दिल्ली की राजनीति में सम्मानजनक स्पेस मिला करता था।

रूबिया कांड के लिए याद किये जाने वाले देश के गृह राज्यमंत्री, मुफ़्ती मोहम्मद सईद एक बडे नाम थे। कम लोग जानते हैं कि उन्हें उत्तर प्रदेश से जिताकर लाया जाता था।

गुलाम नबी आजाद भी दिल्ली में कश्मीर का चेहरा रहे, औऱ, और उनका आधार राज्यसभा ही रहा। दोनों की राजनीति कांग्रेस से निकली है, जो कश्मीर के प्रतिनिधित्व का महत्व समझा करती थी।

आज तो सत्ताधारी पार्टी का कश्मीर में कोई नामलेवा नही। जम्मू और लद्दाख से जीते भजपायी सांसदों की कोई वक़त नही।
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फारूक अब्दुल्ला राष्ट्रपति पद के लिए पक्ष विपक्ष का सर्वसम्मत चयन हो सकते थे। एपीजे कलाम की तरह, यह चयन आम भारत को सरप्राइज करता..

लेकिन यूएन से लेकर मुगल गार्डन तक फारूक की बातें, कश्मीरियों के दिल की डाली को कैसा हरा कर देती। इमेजिन कीजिए। कोविंद औऱ द्रोपदी मुर्मू को लाकर जो हित साधा गया, उससे बड़ा हित सधता।

भाजपा इस लेवल पर सोच नही सकती। कभी कांग्रेस की सरकार आये, तो गुलाम नबी आजाद उस कद के नेता हो सकते थे। लेकिन दिल्ली के किसी मामूली बंगले के लिए उन्होंने वह कद खो दिया।
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कश्मीर के दूसरे नेता भी निहायत सस्ते तरीक़े से ट्रीट किये जाते हैं। वहाँ के आतंकियों के लिए हमारे पास बंदूक है, सेपरेटिस्ट के लिए जेल है, औऱ नॉन सेपरेटिस्ट के लिए उपेक्षा है।

असल मे यह सरकार तो, इन तीनों के बीच कोई फर्क ही नही समझती।

उल्टे जम्मू की सीटें परिसीमन में बढ़ाकर, और आजाद की पार्टी से वैली में विरोधियों के वोट कटवाकर एक और राज्य सरकार पाने की कोशिश है।

इसके बाद जम्मू का कोई खट्टर या धामी, सीएम बनाकर बिठा दिया जाएगा। वैली में भारत की वापसी की उम्मीदों का रहा सहा कचूमर भी निकल जायेगा।
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लीडरशिप की नई पौध, महबूबा और उमर को नजरबंदी, जेल, औऱ पाबंदियों से दबाने की कोशिश है। भारत के सम्विधान की बेझिझक शपथ खाने वाले ऐसे लीडर्स, एक अवसर हैं। उन्हें बचाये, बनाये रखना चाहिए।

लेकिन दिन रात चुनाव जीतने के कुचक्र में लगी पार्टी, उसका पितृ संगठन, और सरकार को यह समझ आता नही।

तो कश्मीर के ये नेता, भारत के लिए महज मिस्ड ओपरच्यूनिटीज हैं।