लेखक : लक्ष्मी प्रताप सिंह
एक तरफ कोवि’द के बाद जहाँ कई देशों ने महंगाई को माइनस में भेज दिया है वही भारत दुनियां के सबसे अधिक महंगाई वाले देशों में है. भारत सरकार टैक्स बड़ा कर और जनता का प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ (सब्सिडी) ख़त्म कर, जान बूझ कर आम जनता की परचेजिंग पावर घटा रही है. रूपये की कीमत आज भूटान की करेंसी के बराबर पहुँच चुकी है. रुपया की कीमत गिरने से देश की अर्थव्यवस्था डूबती है आपके जीवन मे रोजमर्रा के जरुरत के सामान महंगे होते जाते हैं.
देश में बनने वाली बहुत चीजों का रॉ मटेरियल विदेशों से आता है जिसे खरीदने को 54 रुपया देना पढता था.. वहां आज 78.5 देना पड़ेगा तो जाहिर सी बात है वो चीज महँगी हो जाएगी. मेक इन इण्डिया हो या भारत का एक्सपोर्ट , सभी में रॉ मेटेरियल बाहर से ही आता है. जिससे हमारा मुनाफा नहीं बढ़ रहा ना आम आदमी की बचत.
दूसरी तरफ भारत का 85.5% पेट्रोलियम (डीजल पेट्रोल) विदेश से आता है. इसका भुगतान डॉलर में ही होता है तो डॉलर एक रुपया भी बढ़ता है तो करोड़ों का ऋण खर्चा बढ़ता है. देश में नमक तेल साबुन सब डीजल वहां से ही आता जाता है तो इनके रेट भी बढ़ते हैं. लोग कम खरीदेंगे तो मार्किट रुकता जायेगा और समस्या बढ़ती जाएगी.
सरकार पहले डीजल पे सब्सिडी देके महंगाई कंट्रोल कर देती थी लेकिन फिर अम्बानी भाई ने मोदी सरकार आने पे भारत में बंद पड़े पेट्रोल पंम्प खोल दिए जो बंद ही इसी लिए हुए थे क्योंकि सरकर सब्सिडी देके सस्ता बेच रही थी. अब महंगाई में चाहे जनता मर जाए लेकिन सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी.
पहले भारत में एक पैरलल इकोनॉमी चलती थी जिसमें छोटा दूकानदार का कैश का लेंन-देंन और उधार खाता था लेकिन मोदी जी ने नोटबन्दी, डिजिटल इण्डिया लगा के अपना GST रिवेन्यू तो बढ़ा लिया लेकिन वो छोटे -2 माइक्रो इकोनॉमी के सिस्टम ख़त्म कर दिए. अब सारा RBI और बैंको से कंट्रोल हो रहा है. और बैंको के लाखों करोड़ लेके व्यापारी देश छोड़ के भाग रहे. मोदी सरकार ने सारे सिस्टम ध्वस्त करके कंट्रोल सेंट्रलाइज्ड कर दिया जिससे सिर्फ और सिर्फ उधोगपतियों को मुनाफा हुआ है. #कालचक्र
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