सरकार के सहयोग से प्राइवेट सेक्टर की नजर पानी पर टैक्स लगाने की

जिस तरह से बिजली के स्मार्ट मीटर लग रहे हैं वैसे ही आने वाले दिनों में जल प्रदाय के भी स्मार्ट मीटर लगने शुरू हो जाएंगे, मोदी सरकार अंदर ही अंदर तेजी से तेजी से जल के निजीकरण पर काम कर रही है

पानी के स्मार्ट मीटर में सेंसर के जरिए मीटरों की रीडिंग आएगी और आने वाले समय में उपभोक्ता रोजाना मोबाइल एप पर ये देख सकेगा कि आज कितना पानी खर्च किया

यह सब होगा स्मार्ट सिटी के नाम पर

जल का निजीकरण दुनिया के बड़े पूंजीपतियों की सबसे महत्वाकांक्षी योजना है क्योंकि इसे नीले सोने के नाम से जाना जाता है

इक्कीसवीं शताब्दी में साफ पानी सबसे बड़ी कमोडिटी है, वाटर इंडस्ट्री का वार्षिक राजस्व आज आयल सेक्टर के लगभग 40 प्रतिशत से ऊपर जा पहुँचा है। फ़ॉरच्यून पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार बीसवीं शताब्दी के लिए तेल की जो कीमत थी इक्कीसवीं शताब्दी के लिए पानी की वही कीमत होगी।

सरकारे अब इससे भी मुनाफा कमाना चाहती है वे चाहती हैं कि पानी का निजीकरण हो ही जाए ताकि मुनाफे का एक हिस्सा सरकारों तक भी पहुंचता रहे इसकी शुरुआत PPP प्रोजेक्ट के जरिए जल वितरण की व्यवस्था में निजी कम्पनियो की भागीदारी सुनिश्चित कर के की जा चुकी है

इस तरह से पानी के निजीकरण करने के क्या खतरे है ?…. यह दक्षिणी अमेरिकी देश बोलिविया से स्पष्ट हो चुका है, साल 1999 में, जब विश्व बैंक के सुझाव पर बोलिविया सरकार ने कानून पारित कर कोचाबांबा की जल प्रणाली का निजीकरण कर दिया.उन्होंने पूरी जल प्रणाली को ‘एगुअस देल तुनारी’ नाम की एक कंपनी को बेच दिया, जोकि स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों का एक संघ था.कानूनी तौर पर अब कोचाबांबा की ओर आने वाले पानी और यहां तक कि वहां होने वाली बारिश के पानी पर भी ‘एगुअस देल तुनारी’ कंपनी का हक था.निजीकरण के कुछ समय बाद कंपनी ने घरेलू पानी के बिलों में भारी बढ़ोतरी कर दी. कोचाबांबा में उनका पहला काम था 300 प्रतिशत जल दरें बढ़ाना। इससे लोग सड़कों पर आ गए।

कोचाबांबा में पानी के निजीकरण विरोधी संघर्ष शुरू हुआ था जो सात से अधिक सालों तक लगातार चला, जिसमें तीन जानें गईं और सैकड़ों महिला-पुरुष जख़्मी हुए। …..जिस निजी कम्पनी को जल पर नियंत्रण रखने का ठेका दिया गया उसका एकमात्र उद्देश्य था- मुनाफा कमाना।……..उन्होंने कोई निवेश नहीं किया। वे देश के बुनियादी संसाधनों का उपयोग कर सिर्फ मुनाफा ही कमाना चाहते थे।

बोलिविया के अनुभव से सीख लेते हुए जलक्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप से हमे बचना चाहिए…… लेकिन ऐसा होता हमे दिख नही रहा है, बिजली तो पूरी तरह से निजी हाथों में जा ही चुकी है अब पेयजल व्यवस्था पर भी निजी क्षेत्र का कब्जा होने जा रहा है

Author: Gurish Malviya