झूठ को अगर बार-बार दोहराया जाय तो वह सच से भी बड़ा दिखने लगता है. हिलटर के प्रचार मंत्री जोसेफ गोएबल्स के इस फॉर्मूले का सबसे सही इस्तेमाल भारत में भगवा विचार के लोगों ने किया.
आपने अक्सर सुना होगा कि अगर राजीव गांधी ने शाहबानो केस के जरिए मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं किया होता तो संघ परिवार राम मंदिर आंदोलन शुरु नहीं करता. अगर राजीव गांधी सरकार ने राममंदिर का ताला नहीं खुलवाया होता तो बाबरी विध्वंस नहीं होता आदि-आदि.
बात सही है कि राजीव गांधी सरकार को या किसी भी सरकार को कट्टरपंथियों के आगे नहीं झुकना चाहिए. लेकिन यह झूठ है कि अगर शाहबानो नहीं होता तो संघ परिवार वह नहीं करता जिसके लिए उसका जन्म हुआ था.
संघ परिवार/भगवा विचार के लोग अगर यह नहीं करते तो क्या करते ? जन्म से ही उनका अजंडा क्या था? उनका जेनेसिस क्या है?
नीलांजन मुखोपाध्याय ने लिखा है कि राममंदिर आंदोलन के बीज 1983 में ही पड़ गए थे. यूपी के एक (हिंदूवादी) कांग्रेसी नेता दौदया ल खन्ना ने तब इंदिरा गांधी से मांग की थी कि अयोध्या के साथ-साथ काशी और मथुरा का जीर्णोद्धार किया जाए. खन्ना साहब अपनी मांग के साथ कमलापति त्रिपाठी सेमिले. त्रिपाठी जी ने खन्ना को शंट कर दिया. कहा – बारूद में चिंगारी मत फेंको. यह कांग्रेस की हिंदू-मुस्लिम एकता की नीति के खिलाफ है.
इसी दौरान गुलजारीलाल नंदा ने श्रीराम जन्मोत्सव समिति बनाई. रामनवमी के दौरान नंदा ने लोगों को प्रसाद खाने के लिए बुलाया जिसमें संघ के लोग भी थे. प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह उर्फ रज्जू भैया (आगे चलकर संघ के सरसंघचालक बने) और कांग्रेस से नाराज़ खन्ना और नंदा ने मुजफ्फरनगर में मीटिंग की. राममंदिर आंदोलन लांच करने के बारे में पहली बार,नीलांजन मुखोपाध्याय के मुताबिक यहीं चर्चा हुई. तीन साल बाद
1986 में संघ की प्रतिनिधि सभा ने प्रस्ताव पास कर सरकार के मांग की. कहा कि अयोध्या की ज़मीन हिंदुओं को वापस दे दो. इसी साल, राजीव सरकार ने शाहबानो केस का फैसला पलट दिया
वजाहत हबीबुल्ला ने लिखा है कि इसके मुख्य कर्ताधर्ता एमजे अकबर थे. मोदी सरकार में मंत्री बने. बाद में मी टू में दोषी पाए जाने के बाद बाहर निकाल गए. अकबर और आरिफ मोहम्मद दोनों कांग्रेसी थे. दोनों राजीव के नजदीकी. दोनों एक दूसरे के विरोधी. दोनों आगे चलकर बीजेपी में शामिल हुए. एक साल बाद
1987 में संघ ने अयोध्या के साथ-साथ सोमनाथ का मुद्दा उठाया. दो साल बाद
1989 में संघ के केन्द्रीय कार्यकारी मंडल ने प्रस्ताव पास कर राजीव सरकारसे मांग की. दोहराया कि अयोध्या की ज़मीन हिंदुओं को दो.
1989 के पालमपुर अघिवेश में भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर को आधिकारिक रूप से मुद्दा घोषित किया. इसके बाद आडवाणी की रथयात्रा हुई.
1992 में बाबरी विध्वंस के साथ ही हिंदुत्व की राजनीति के उभार का पहला चरण पूरा हुआ.
कहने का मतलब यह है कि गोएबल्स के भारतीय वंशज दुष्प्रचार में माहिर हैं. उनकी कहनूत पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए.
1920 के दशक से लेकर 1990 के दशक तक यानि 70 साल तक भारतीय समाज-राजनीति-सांस्कृतिक जीवन हर जगह हाशिए पर पड़े भगवाविचार के लोगों का जन्म,विकास और विस्तार के मूल में हिंदू सांप्रदायिकता है. जब ये किसी और को दोषी ठहराएं तो समझ जाइए कि यह अपने पाप का घड़ा दूसरों के सिर पर फोड़ने की साजिश है और कुछ नहीं.