कला

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समझौते का सवाल ही नहीं उठता, लड़ाई शुरू होने दो: संजीव भट्ट की कविता

सच बोलने की कीमत चुकानी पड़ती है, खासकर तब जब तानाशाही सरकार होती है। सत्ता पाने के लिए, विश्व में धर्मनिरपेक्ष भारत की छवि को दफना देने की 2002 गुजरात दंगे में कुछ ही अधिकारी अपने कर्तव्य का पालन किए बाकी रवायत के अनुसार अपने मुखिया के गलत आदेशों को अंजाम देने व दंगों को …

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आज़ादी के इर्द-गिर्द : चर्चा एक किताब की

मैं आपको एक किताब के बारे में बताऊंगा,जिसे मेरी बेटी ने उपहारस्वरूप दी है. किताब का नाम है – India Remembered . बेटी इतिहास पढ़ाती है और इतिहास के प्रति मेरे लगाव को शायद समझती है ; इसीलिए उसने इस किताब को मेरे लिए चुना होगा. किताब पामेला मॉउन्टबेटन की लिखी है ,जिसकी भूमिका उनकी …

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देवानंद की ‘गाईड’ याद करें

देवानंद की 1965 में रिलीज़ हुई ‘गाईड’ अगर उस साल बॉक्स ऑफिस पर बहुत सफल भले नहीं रही लेकिन चर्चित ज़रूर रही. इसने उस साल के सात फिल्मफेयर अवार्ड हासिल किये, जिसमें बेस्ट हीरो, हीरोइन, डायरेक्टर, फिल्म के अवार्ड भी शामिल हैं. इसे बेस्ट फोटोग्राफी, संवाद और स्टोरी के भी अवार्ड मिले लेकिन त्रासदी ये …

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प्रेमचंद का हिंदू होना

कमल किशोर गोयनका ने ‘अगर प्रेमचंद हिंदू थे’ (25 मार्च) लेख में नामवर सिंह की ‘असाहित्यिक ग्रंथि’ का कम, अपनी ‘हिंदू ग्रंथि’ का खुलासा अधिक किया है। ऐसा वे ‘पांचजन्य’ सहित अन्य पत्र-पत्रिकाओं में जब-तब करते रहे हैं। यह सही है कि नामवर सिंह इन दिनों अपनी वक्तृता में विचलन और उन्मुक्तता से ग्रस्त हो …

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हरिशंकर परसाई : आवारा भीड़ के खतरे

हरिशंकर परसाई का बेहद प्रासंगिक और महत्वपूर्ण लेख पूरा लेख जरूर पढ़ें और दूसरों को पढ़वाएं। लेख के दो छोटे अंश यहीं पर दे रहे हैं। पूरा लेख नीचे पढ़ा जा सकता है।युवक-युवतियों के सामने आस्था का संकट है। सब बड़े उनके सामने नंगे हैं। आदर्शों, सिद्धांतों, नैतिकताओं की धज्जियाँ उड़ते वे देखते हैं। वे …

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एक महिला जो हर दिन मेट्रो स्टेशन में जाकर बैठती है, केवल 1950 में अपने पति द्वारा रिकार्ड की गई घोषणा को सुनने के लिए

लंदन में, एक महिला है जो हर दिन सबवे (मेट्रो) स्टेशन में जाकर बैठती है, केवल 1950 में अपने पति द्वारा रिकार्ड की गई घोषणा को सुनने के लिए। फोटो में दिख रही महिला मार्गरेट मैक्कलम है जो अपने पति ओसवाल्ड लारेंस की मृत्यु के बाद इस रिकॉर्डिंग को सुनने के लिए बेंच पर बैठी …

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मैं खुश हूं कि मुझे आ गई है कमाल की अदाकारी

निदा रेहमान की: मुक्त कविता #इश्क़ मैं खुश हूं कि मुझे आ गई है कमाल की अदाकारी इस क़दर ढल गईं हूँ बनावटी ज़िंदगी में कि तमाम सवालात ख़त्म हो गए हैं उनके जो तलाशते रहते हैं राख़ में चिंगारी, अब कोई समझ नहीं पाता है मेरे कहे लफ़्ज़ों को अब कोई देख नहीं पाता …

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