क्या गांधी अंबेडकर के बीच चुनाव हो सकता है ?

मैं गांधी के विरोध या उन्हें कई मौकों पर गलत साबित करने वाले कई तथ्य दे सकता हूं। लेकिन क्या आज ये वक्त है की हम गांधी, नेहरू, लोहिया, जेपी, अंबेडकर में से एक को चुनें ? जो लोग ऐसा करें मैं कहता हूं वो गांधी को पसंद भले करते हों लेकिन उन्हें समझते नहीं और फॉलो तो बिलकुल नहीं करते …

चलिए गांधी के शेड्यूल कास्ट (हरिजन उत्थान) की बात करते हैं। गांधी ने क्या किया ? जिनके साथ छुआछूत होती थी उन्हें “हरिजन” मतलब “भगवान के लोग” कह दिया। क्या इससे समस्या सुलझी ? नही साब । किसी लड़की का रेप हो जाए और आप उसका नाम “ईश्वर की बेटी रख दो” तो क्या उसे न्याय मिल गया ? अरे उससे तो और आसानी से चिन्हित होगा बल्कि समाज उस लड़की को जिंदगी भर उस घटना की याद दिलाता रहेगा। वो जीवन भर उसी मानसिक प्रताड़ना के एक अंश को झेलेगी । समाज ने क्या याद रखा ? हरिजन है मतलब इसे नही छूना है।

और अगर नाम ही रखना था तो छुआछूत करने वालों का नाम “दुर्जन” रख देते। कम से कम उन्हें बेज्जती फील होती तो कुछ तो सुधार करते। न्याय गलत करने वालों को दंडित करने को कहते हैं ना की पीड़ित पक्ष का नाम हरिजन रखने से।

अब इसका दूसरा पहलू भी है।
उस समय जब गांधी आए तो छुआछूत चरम पे थी और ये कोई मुद्दा भी नही था। (अंबेडकर ने कहा की आजादी से पहले छुआछूत हटाओ तो गलत नही कहा क्योंकि उस समय उन्हें लगा कि अंग्रेजो से आजादी मिल भी गई तो बिना जमीन बिना शिक्षा के वर्ग को उच्च जातियों की गुलामी करनी पड़ेगी।) अंग्रेज महारों को सेना में भर्ती कर लेते थे लेकिन शिवाजी नही करते थे। तो गांधी ने हरिजन टर्म इस लिए दिया ताकि कम से कम छुआछूत मुद्दा तो बने। गांधी ने छुआछूत को चिन्हित करने में बड़ा कदम उठाया।

लेकिन अब ये आप की समझ, ज्ञान और नियत पे निर्भर करता है की आप गांधी को अच्छा मानते हो या उस के लिए अंबेडकर को बुरा कहना जरूरी है। क्या आपकी समझ भी बाइनरी में है की एक को चुनने के लिए दूसरे को अच्छाई के पायदान से धकेलना जरूरी है ?

अरे आजादी के बाद विपक्ष के धुर विरोधी नेताओं को साथ लाना इस सोच का पर्याय था की किसी एक को नही चुनना है। उस वक्त के नेताओं का मानना था की “मजबूत लोकतंत्र मजबूत  विपक्ष से बनता है” और विपक्ष को मजबूत करता हां पक्ष (अर्थात सरकार)।

गांधी ने स्वयं डोमिनियम स्टेट की मांग की थी क्योंकि तब भारत लड़ने की हालत में नहीं था। हर महान नेता के कार्य उस समय के अनुरूप थे। उन्हें आज के चश्मे से देखना उनके साथ अन्याय है। या तो सबकी इज्जत हो या फिर किसी की नही। क्योंकि …

आलोचना से परे कोई भी नही है … #कालचक्र