पितृभिः ताड़ितः पुत्रः शिष्यस्तु गुरुशिक्षितः
धनाहतं स्वर्ण च जायते जनमण्डनम।
पिता द्वारा डांटा गया पुत्र, गुरु के द्वारा शिक्षित किया गया शिष्य, सुनार के द्वारा हथौड़े से पीटा गया सोना, ये सब आभूषण ही बनते हैं। तेजस्वी भी आभूषण बन रहे है। बिहार के राजनैतिक पटल पर लालू युग को आगे बढाने का भार उनके कन्धों पर है। ये वो लालू है, जिसने सांप्रदायिकता के सामने कभी घुटने नही टेके, और धमकियों को फूंक मे उड़ाया। मित्रों से छले गए, जीवन और सम्मान पर हमले देखे, लेकिन लालू झुका नही। तेजस्वी भी नही झुका। सींखचों से पीछे पड़े बाप, बिखरती राजनीतिक विरासत और परीवार को जिस तरह सम्हाला है, वह पीठ थपथपाने के काबिल है। मौजूदा पालीटिकल डाइनेस्टों मे ऐसा दावा सिर्फ जनमोहन रेड्डी कर सकते हैं। लेकिन वह केन्द्र की सत्ता के साथ तैरकर बढें हैं, लहरों के खिलाफ नही।
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लेकिन राजनीति अलग चीज है, प्रशासन एकदम दूसरी। वोटों की राजनीति, चुनावी बकवासों और दलों की तोड़फोड़, उलटबांसियो से सत्ता पा जाना उपलब्धि नही है।
महज प्लेटफार्म है, काम तो यहां से शुरू होता है।
पिता लालू यहीं फेल हुए।
राजद का जंगलराज, आज तक आम बिहारी को डराता है। नीतिश का सुशासन बाबू बन जाना, खुद की ही ईजाद नही, वह लालू राज की प्रतिक्रिया का ध्रुव था। भाजपा का उभार भी एक हद तक बिहारियों की प्रतिक्रिया है।
राजद की सुशासन की विरासत होती, तो उड़ीसा के नवीन पटनायक की तरह उसे बिहार की अबाध सत्ता मे रहने का कोई शक नही था।
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तेजस्वी को इसी पर काम करना है। बाप के दाग धोने है।
2017 का अनुभव भी काम आएगा। परिवार के कांटे दोबारा मंत्रीमण्डल मे न आऐ। राजद की देहाती और उजड्ड छवि मे करेक्शन हो। परीवार से बाहर के परीश्रमी और वफादार लोग मंत्री बने पुरूस्कृत हो।
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और भले सरकार नीतिश की हो, उसमे नई चमक और महक तेजस्वी की हो। लालू द्वारा डांटा गया पुत्र, नीतिश के द्वारा शिक्षित किया गया भतीजा, और भाजपा के द्वारा हथौड़े से पीटा गया तेजस्वी, बिहार का आभूषण बने।
यह गोबरपट्टी की प्रखर जरूरत है।