आपको बात जरा अनोखी लगेगी। जापान और बस्तर का एकमात्र कनेक्शन तो वो लौह अयस्क है, जो निप्पोन की आयरन फैक्ट्री के लिए, एनएमडीसी द्वारा बस्तर से खोदकर भेजता है।
तो साहेबान, कथा शुरू होती है 1989 से,
जब जापान मे एसेट बबल फूटा। जापान, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से दुनिया का कारखाना रहा, जैसे आज चीन है। तो दुनिया को सामान बेचते, निर्यात तेज था, आयात कम। दुनिया का पैसा जापान आता, ट्रेड सरप्लस कहते है उसे। इस पैसे से सैलरी मिलती, बचत होती, बैंक बैंलेंस बनता, और प्रॉपर्टी खरीदी जाती। कमाते हुए इंसान के सरप्लस पैसे की अंतिम शरणस्थली प्रॉपर्टी होती है। नतीजा प्रॉपर्टी प्राइज बढ़ती गई, और बहुतई बढ़ गई। लोग मुनाफे के लिए कर्ज लेकर प्रापर्टी खरीदते। इन्फलेशन भी बढा, आम जीवन की चीजे भी पैसे की उपलब्धता के अनुपात मे महंगी हो रही थी। तो बैंक आफ जापान ने ब्याज दरें बढाई। बस ऐसेट बबल मे सूई चुभ गई। प्रापर्टी प्राइज ऐसे गिरे, कि लोन लेकर जो मकान दस लाख मे लिया, वो बेचकर एक लाख न मिले। बड़ी फर्मो के शेयर गिरे, तो शेयर मार्किट भी गिरा। तो गिरने की जो प्रतियोगिता शुरू हुई उसमे सब गिरने लगा। जापान मंदी और स्टेगफलेशन मे फंस गया।
बैंक आफ जापान ने ब्याज दर गिराई। सरकार ने उद्योगों को टैक्स कट दिये, पैकेज दिए ताकि व्यापार बढे़। लेकिन पैकेज के पैसे और टैक्स कट से हुआ मुनाफा, व्यापारियों ने जेब मे भर लिया।
बैंक मे बचत कर लिया, नया इन्वेस्ट न किया। बेचारे बैेक आफ जापान ब्याज दर गिराते गिराते शून्य पे ले आया। लेकिन कर्जा लेकर धंधा करे कौन??
(इसलिए जापान भारत को जीरो इन्ट्रेस्ट रेट पर एक लाख करोड बूलेट ट्रेन के लिए देने को तैयार है। ब्याज न मिले, तकनीके, कलपुर्जे और जापानी कंपनियों को ठेके का पैसा तो मिलेगा)
खैर। बैंक आफ जापान ने लाख सर पटक लिया, मंदी खत्म हुई नही।
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शिंजो आबे आ गए। अपनी आबे नामिक्स लेकर।
ब्याल दर जीरो है, नेगिटिव कर दो। इकानमी मे पैसे का फ्लो नही, कोई बात नही सरकार पैसे खर्च करेगी। सरकार के पास उतना पैसा नही, कोई बात नही, सरकार बैंक आफ जापान से कर्ज ले लेगी।
इस तरह की आबेनामिक्स से कुछ हुआ तो नही, उल्टे सरकार रोआं रोआं कर्जे मे डूब गई। जीडीपी का ढाई गुना कर्ज लेकर बैठ गई। शिजो इस्तीफा देकर खिसक गए, कर्जा रह गया।
लेकिन ये पैसा तो बैंक आफ जापान से था। सरकार, तो जनता है न। तो जापानी जनता, बैंक आफ जापान की कर्जदार है। उसकी सारी बचत और जमा पूंजी तो बैंक आफ जापान के सिस्टम मे ही है। जनता बैंक से लेगी, या देगी?? कौन दिया, कौन लिया, कौन किसका कर्जदार... यह अबूझ पहेली, जारी है। जापान इन्फलेशन और महंगाई को तरस रहा है। दुनिया कहती है कि जापान की इकानमी मे ग्रोथ नही है, वर्स्ट परफार्मिंग है, येन डूब रहा है। और जापान के लोगों को कौनो मतलब नाही। उनकी क्वालिटी आफ लाइफ दुनिया मे सबसे बढिया है। अच्छे शहर, पार्क, हस्पताल, स्कूल, ट्रांसपोर्ट, साफ पर्यावरण, कालोनी सब है। 60 प्रतिशत लोग पेंशनर हैं। समुद्र किनारे घूमते है, पेटिंग करते है, संगीत सुनते है, मौज करते है। 40 पर्सेन्ट लोग काम करते है, बहुत सा काम आटोमेशन और रोबोट से हो रहा है। काहे का जीडीपी, इन्फ्लेशन, ग्रोथ, सरप्लस, डेफिसिट तेल लेने गई तेरी इकानमी।
बस्तर के जंगल मे सुबह चहलकदमी करता, ओपन डिफेकेशन करता, कंदमूल और थोड़ा अनाज उगाकर वो आदिवासी पेट भरता है। झोपड़ी मे भर नींद सोता है, कभी पेड़ के नीचे भी। शाम को ताश या गोटी खेलता है, हंडिया पीकर मस्त रहता है, और सात बजे सो जाता है।
उसकी हेल्थ शानदार है, उसका पर्यावरण स्वच्छ है। वह भरे पूरे परिवार के बीच सारा वक्त गुजारता है। नाचता है, गाता है। मुर्गा काटकर बूढादेव को खून चढाता है।
कुछ उसके साथ वाले, कुछ लोग राइस बैग लेकर क्रिस्चन बन गए। वो लोग मुर्गा काटकर, जीसस की मूर्ति पर खून चढाते है।
वे लोग चाहे, जिस पर खून चढाऐं। वे सुखी हैं, आपसे मुझसे ज्यादा। सरकारी रिकार्ड मे गरीबी, बीपीएल कहा जाने वाला बस्तर का आदिवासी वे उस अमीरी की उस स्टेज मे है, जहां तमाम भाग दौड़ के बाद जापानी पहुंच पाए है …
जहां आपका इस जन्म मे पहुंचना संभव नही।
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अब हम उनकी जिंदगी खोदने पुलिस, अर्धसैनिक बल और सरकारी मशीनरी लेकर पहुंच गए है। विकास कराकर दम लेंगे। स्किल-स्केल-स्पीड सिखाकर “प्रॉपर प्रोडक्टिव ह्यूमन रिसोर्स” बनाऐंगे।
देखिए जरा, खेजिए कि हमारे पैमाने गलत तो नही??
पैमाने धर्म के, इकानमी के,
और जीवन के…
क्या इन्हें थोड़ा बदलने की जरूरत है??