क्या सुप्रीम कोर्ट संघी ब्राम्हण और बनियों का चिड़ियाघर बन गया है?

CJI यू यू ललित को जब 2014 में अमित शाह सुप्रीम कोर्ट लेकर आये तब वे जानते थे हमारा आदमी सिर्फ 73 दिन के लिए ही सीजेआई बनेंगे वह भी 2022 में. इसलिए 2014 से ही Supreme Court को डिस्टर्ब करना शुरू कर दिया इसका फायदा यह मिला कि एच एल दत्तु, दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई और शरद अरविंद बोबड़े सरकार के साथ आ गए या लोभ देकर लाये गए.वही राजेन्द्र मल लोढ़ा, तीरथ सिंह ठाकुर,जगदीश सिंह खेहर और एन वी रमना तटस्थ रहने की कोशिश कर भी सरकार के खिलाफ नहीं जा पाए.कुलमिलाकर मोदी के 8 साल में सुप्रीम कोर्ट अपनी साख पूरी तरह से गंवा दिया.

सरकार के पक्ष में सभी बड़े फैसले दीपक मिश्रा या गोगोई के समय लिखा गया.गोगोई सुप्रीम कॉर्ट इतिहास का सर्वकालिक महान गद्दार माना जायेगा. रमना से उम्मीदें बहुत थी कम से कम यूएपीए , एनएसए,दिल्ली दंगों, सीएए -एनआरसी में सताए जा रहें सैकड़ो मुस्लिम युवाओं की आवाज सुनेंगे या संजीव भट्ट ,सिद्दीकी कप्पन व भीमा कोरेगांव केस में अंदर लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट नरम होंगे पर नहीँ हो पाए या होना नहीं चाहते थे.वे सिर्फ चिंता जाहिर करते रहें जबकि उन्हें काम करना था.असहाय से नजर आए रमना.

शायद इसकी वजह यह भी कि जो 30 के आसपास जज सुप्रीम कोर्ट में हैं उनमें से 25 मोदी और शाह के ही आदमी हैं.सवर्ण बिरादरी के हैं और अयोग्यता के बावजूद कॉलेजियम के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में ठूंसे गए हैं.रमना बिलकिस मामले में भी खानापूर्ति किया.सुप्रीम कोर्ट हिंदुओं का हिंदुओं के लिए और हिंदुओं द्वारा चलाये जा रहें नाम का संवैधानिक संस्था नजर आ रहा है.

जो विविधता विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सुप्रीम कोर्ट में होनी चाहिए वह नदारद है.सिर्फ एक दलित जज हैं जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवाई ,सिर्फ एक मुस्लिम जज हैं जस्टिस अब्दुल नजीर जबकि एक भी आदिवासी जज नहीं है.इनके बेंच को कोई महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई का मौका मिला है सुनने में नहीं आता.मुस्लिम जज मुस्लिमों के मामले में फैसला देने वाले बेंच में नहीं रहते हैं.

सुप्रीम कॉर्ट ब्राम्हण और बनियों का चिड़ियाघर बन गया है.5 ब्राम्हण मिलकर इस बात पर चर्चा करते हैं कि ब्राम्हणों,सवर्णों को आरक्षण मिलना चाहिए या नहीँ.3 बनिये मिलकर चर्चा करते हैं कि फलां मामले में अम्बानी को,अडानी को राहत मिलनी चाहिए या नहीँ.संघ को अपने मजदूरों से,कामगारों से काम लेना आता है,73 दिन में भी वे अपने कामगार से पूरा पैसा वसूल करेंगे जिसकी बानगी गुजरात दंगों के मामले की सुनवाई हमेशा के लिए खत्म करना है.

मेरा कहना यही है कि जब वे 73 दिन में ही अपना सब काम करवा लेते हैं तो कथित तौर पर निष्पक्ष बनने वाला या लोकतंत्र की दुहाई देने वाला डेढ़ साल बाद भी वह काम क्यों नही कर पाता है? सुप्रीम कोर्ट के वेबसाइट में देख लीजिए जो 30 जज हैं उनके नाम,सरनेम,बैक रिकार्ड और फैसले.ऐसा लग रहा है सुप्रीम कोर्ट जानबूझकर मुस्लिमों के हित, राहत से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं कर रहे हैं,लेकिन मंदिर और मस्जिद विवाद आ रहा है तो एक पैर में तैयार है और सभी फैसले हिंदुओ के पक्ष में जा रहे हैं.

आखिरी बात अगर आपमें से किसी को ये मुगालता हो कि इसके बाद चंद्रचुड़ लोकतंत्र की नींव को बचा लेंगे तो सुनिये सरकार के पक्ष में आये सभी बड़े फैसले देने वाले बेंच का हिस्सा रहे हैं चंद्रचुड़.

लेखक : विक्रम नारायण सिंह चौहान (स्वतंत्र टिप्पणीकार एवं नीति विषय के जानेमाने लेखक)