आजादी से पहले हिंदुस्तान की स्थिति कृषि में मजबूत नहीं थी। बंगाल में अकाल पड़ा 30 से 60 लाख लोग मरने की जानकारी मिलती है। अर्थशास्त्री अमृत्य सेन के अनुसार इस “बंगाल फेमिन” का कारण अंग्रेजों द्वारा अनाज को ना भेजना ज़्यादा है। अंग्रेजों द्वारा कृषि को दरकिनार करने, डिस्ट्रीब्यूशन तबाह करने की वजह से भारत के 80% किसान सिर्फ खाने भर को अनाज भी नहीं उगा पाते थे। भारत एक भूखा (Hungary) व सपेरों का देश (Nation) कहा जाता था।

प्रधानमंत्री नेहरू ने 1952 में राज्य व लोकसभा में सम्मिलित भाषण में कहा कि “बिना कृषि क्षेत्र को खड़ा किये’ इंडस्ट्री खड़ी नहीं हो सकती।” नेहरू ने को-ऑपरेटिव फार्मिंग का कॉन्सेप्ट दिया जो तंजानिया, वियतनाम, चीन की तरह सफल नहीं हुआ, क्योंकि वहाँ अधिकतर जमीन समाज में बंटी थी जबकि इसके उलट भारत में बड़े रजवाड़े-जमींदार ज्यादातर जमीन पर कब्ज़ा जमाए बैठे थे

नेहरू ने भारत के फायदे वाला अमेरिका के साथ पब्लिक लॉ PL-480 समझौता किया। (ये जानकारी इकोनॉमिक वीकली में Indo US Food Agreement शीर्षक के तहत 1960 में छापी गयी थी) जनवरी 1966 में लालबहादुर शास्त्री की अचानक मौत के बाद इंदिरा जी ने कार्य भार सम्हालते ही “हरित क्रांति” की नींव रखते हुए’ मेक्सिको की CIMMYT से अनाज व फलों के ज्यादा पैदावार वाले 18,000 टन बीज मंगाए, ये उस समय विश्व में बड़ी बात थी इसे “Wheat Revolution By Mrs. Gandhi” कहा गया। इससे गुणात्मक वृद्धि बढ़ती चली गयी।
31 जनवरी 2020 को जारी “सर्वे ऑफ़ इंडिया” के अनुसार 2014 से 2020 तक पिछले 6 सालों में कृषि वृद्धि दर मात्र 2.8% रही है और किसानों की आय भी न्यूनतम हो गयी। #आजादीके70साल
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#कालचक्र
Writer : LakshmiPratap Singh