निदा रेहमान की: मुक्त कविता
#इश्क़
मैं खुश हूं
कि मुझे आ गई है
कमाल की अदाकारी
इस क़दर ढल गईं हूँ
बनावटी ज़िंदगी में कि
तमाम सवालात ख़त्म हो गए हैं
उनके जो तलाशते रहते हैं राख़ में चिंगारी,
अब कोई समझ नहीं पाता है
मेरे कहे लफ़्ज़ों को
अब कोई देख नहीं पाता है
इन चमकती आंखों के पीछे का सियाह अंधेरा
वैसे इस भागती दौड़ती दुनिया में
किसके पास वक़्त ही है इतना कि
खामोशियाँ पढ़ लीं जाएं दिलों की,
हाँ मैं इसलिए भी खुश हूं
कि तुम भी यक़ीन करने लगे हो
मेरी कमाल अदाकारी पर
तुम्हें अब मेरी खिलखिलाहट का सच महसूस नहीं होता
बहुत सुकून में हो तुम कि
मैं भी चल रही हूं वक़्त के साथ
वैसे ही जैसे तुमने शुरू किया था इक सफ़र
लेकिन तुम भूल गए कि
मैं तुम्हारे जितनी समझदार नहीं
मेरे लिए हर वो सफ़र अधूरा है जहां तुम नहीं
जिसकी मंज़िल तुम नहीं
लेकिन मैं तुम्हारे भरम को बनाएं रखूंगी
अपने क़िरदार को खुशियों का जामा पहनाए रखूंगी।।